सुरु होणार जानकी व ऋषिकेशची प्रेम कहाणी 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharo ghari matichya chuli today's episode

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  सुरु होणार जानकी व ऋषिकेशची प्रेम कहाणी 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharo ghari matichya chuli today's episode  घरोघरी मातीच्या चुली या मालिकेच्या आजच्या भागामध्ये आपण पाहणार आहोत ,जानकी ही फुगे फोडत बसलेली असते आणि तेव्हा सारंग  हा त्या ठिकाणी ऋषिकेश कडे जातो ऋषिकेशला बोलतो  दादा माझा नंबर कधी येणार आहे ती मुलगी कधीपासून फुगे फोडत बसली आहे, तेव्हा ऋषीकेश सारंगला बोलतो नंबर येत नसतो तर तो आणावा लागतो आणि तो आपल्या जवळची बंदूक घेऊन जानकीच्या  समोर लावलेले फुगे फोडतो तेव्हा जानकीला अतिशय राग येतो आणि ती  रागाने पाठीमागून वळून   पाहते आणि ऋषिकेश ला विचारते  तुम्ही ही फुगे का फोडले तेव्हा ऋषिकेश तिला उत्तर देतो तुम्ही केव्हापासून प्रयत्न करत आहात फक्त मी तुमची मदत केली आणि त्यावेळेस त्यास फुगे स्टॉलचा मालखा ऋषिकेशला बक्षीस देतो आणि बोलतो हे घ्या तुमचे बक्षीस आणि ऋषिकेश  ते बक्षीस घेऊन जानकीला बोलते हे बक्षीस तुम्ही ठेवा तेव्हा जानकीला राग येतो आणि जानकी ही ते बक्षीस फेकून देते आणि त्यावेळेस आपण पाहतो त्या ठिकाणी मास्क घेतलेला एक व्यक्ति येतो आण...

राणी की वाव,पाटण गुजरात RANI KI VAV PATAN GUJRAT

राणी की वाव,पाटण गुजरात Rani Ki Vav, Patan Gujrat.







पश्चिमी भारत में स्टेपवेल का इतिहास सिंध घाटी सभ्यता से शुरू होता हैं। पश्चिमी भारत में ख़ास तौर पर गुजरात  अपने स्टेपवेल के लिए जाना जाता हैं गुजरात में अबतक लगभग १२० स्टेपवेल की खोज हुवी हैं। इनमे स्टेपवेल स्थापत्य  कला का परमोच्च बिंदु है पाटण स्थित राणी  की वाव। उत्तरी गुजरात के पाटण  जिले में राणी  की वाव का निर्माण संन १०६३ में सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम  की पत्नी उदयमति ने करवाया था। राजा भीमदेव प्रथम  सोलंकी वंश के संस्थापक थे। पाटण ६५० साल तक  गुजरात की राजधानी था बाद में इसे आज के अहमदाबाद में विस्थापित किया। राणी की वाव मारु गुर्जरा स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है,राणी की वाव का निर्माण १०६३  में सरस्वती नदी के किनारे किया था बाद में समय के साथ ये वाव में नदी से मिटटी और पत्थर भरने से ये कुवा पूरी तरह से भर गया था। 




१९४० में में बरोदा स्टेट ने ईसकी फिर से खोज की १९८० में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा यंहा पर बड़ी मात्रा में  खुदाई  की १९८१ से लेके १९८७ तक भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा ईस वाव को पुनस्थापित किया गया। राणी की वाव देश में पाए जाने वाले स्टेपवेल में सबसे विशाल है, जो की ६५ मीटर लम्बी ३० मीटर चौड़ी और २८ मीटर गहरी है, ये वाव कुल सात मंजिला है, २१२ खम्बे से ईसके सात मंजिले बनाएं हैं।  खम्बे नकाशी से सजाये गए है। पूरी राणी की वाव में पौराणिक कथाओं से भरी हैं  खास तौर पर भगवान विष्णु के दशावतारों की मुर्तिया तराशी गयी है, ईनमे कल्कि,भुवराह,वामन,नरसिंहा ,राम, और बुद्ध  अवतार भी शामिल हैं।पुरे वाव में कुल ७०० से भी ज्यादा बड़ी मुर्तिया है और हजारो की सख्या में छोटी मुर्तिया तराशी गयी है ईसमें राणी  उदयमति की भी मूर्ति उकेरी गए हैं। साल २०१४ में राणी की वाव को UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया। 


कैसे पहुंचे

 पाटण अहमदाबाद से ३.५ घंटे की दुरी पर है तो वही महासना से ५० किमी दूर हैं, यंहा से रेगुलर बसेस पाटण के लिए चलती  है। महासना जंक्शन से पाटण के लिए प्रतिदिन रेलवे चलती हैं। अहमदाबाद यँहा का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट हैं,जो की १३० किमी दूर हैं।





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