लताने रणदिवेंच्या घरामध्ये पार्वती बनून केला प्रवेश 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharoghari matichya chuli todays episode

 लताने  रणदिवेंच्या घरामध्ये पार्वती बनून केला प्रवेश 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharoghari matichya chuli today's episode घरोघरी मातीच्या चुली या मालिकेच्या पुढील भागांमध्ये आपण पाहणार आहोत लता ही ऐश्वर्या आणि सारंग ओरडून बोलते मला माहित आहे हे शूटिंग वगैरे काही नाही तुम्ही मला खऱ्या आयुष्यामध्ये करायला लावत आहात आता मला सांगा तुम्ही काय करत आहात तेव्हा ऐश्वर्याही विचारतो की ही घाबरतात इकडे आपण पाहतो जानकी ही नानाला बोलते नाना उद्या पार्वती आईचा श्राद्ध आहे आणि आज भाग आणि या जंगलामध्ये हिरव्या बांगड्या आहेत मला शिकून झाल्यासारखे वाटत आहे तेव्हा ना बोलतात ज्यांच्या काही समज करून घेऊ नको हा एक योगायोग आहे असे काहीच नसते त्यामुळे जानकी बोलते मला तर नाना पुढच्या येणाऱ्या संकटाची चाहूल दिसत आहे तेव्हा नाना सुमित्रा ऋषिकेश सर्वजण हे मंदिरामध्ये पूजा करण्यासाठी केलेले असतात आणि ऋषिकेश कोंडा मध्ये पूजा करायला जातो त्यावेळेस त्या महिला त्या कुंडामध्ये एक महिला पडते आणि ऋषिकेश आतील वाचवला जातो व तिला उचलून बाहेर घेऊन येतो तेव्हा मला विचारतात तू कोण आहेस तेव्हा ती महिला बोलते मी पार्वत...

राणी की वाव,पाटण गुजरात RANI KI VAV PATAN GUJRAT

राणी की वाव,पाटण गुजरात Rani Ki Vav, Patan Gujrat.







पश्चिमी भारत में स्टेपवेल का इतिहास सिंध घाटी सभ्यता से शुरू होता हैं। पश्चिमी भारत में ख़ास तौर पर गुजरात  अपने स्टेपवेल के लिए जाना जाता हैं गुजरात में अबतक लगभग १२० स्टेपवेल की खोज हुवी हैं। इनमे स्टेपवेल स्थापत्य  कला का परमोच्च बिंदु है पाटण स्थित राणी  की वाव। उत्तरी गुजरात के पाटण  जिले में राणी  की वाव का निर्माण संन १०६३ में सोलंकी राजा भीमदेव प्रथम  की पत्नी उदयमति ने करवाया था। राजा भीमदेव प्रथम  सोलंकी वंश के संस्थापक थे। पाटण ६५० साल तक  गुजरात की राजधानी था बाद में इसे आज के अहमदाबाद में विस्थापित किया। राणी की वाव मारु गुर्जरा स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना माना जाता है,राणी की वाव का निर्माण १०६३  में सरस्वती नदी के किनारे किया था बाद में समय के साथ ये वाव में नदी से मिटटी और पत्थर भरने से ये कुवा पूरी तरह से भर गया था। 




१९४० में में बरोदा स्टेट ने ईसकी फिर से खोज की १९८० में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा यंहा पर बड़ी मात्रा में  खुदाई  की १९८१ से लेके १९८७ तक भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा ईस वाव को पुनस्थापित किया गया। राणी की वाव देश में पाए जाने वाले स्टेपवेल में सबसे विशाल है, जो की ६५ मीटर लम्बी ३० मीटर चौड़ी और २८ मीटर गहरी है, ये वाव कुल सात मंजिला है, २१२ खम्बे से ईसके सात मंजिले बनाएं हैं।  खम्बे नकाशी से सजाये गए है। पूरी राणी की वाव में पौराणिक कथाओं से भरी हैं  खास तौर पर भगवान विष्णु के दशावतारों की मुर्तिया तराशी गयी है, ईनमे कल्कि,भुवराह,वामन,नरसिंहा ,राम, और बुद्ध  अवतार भी शामिल हैं।पुरे वाव में कुल ७०० से भी ज्यादा बड़ी मुर्तिया है और हजारो की सख्या में छोटी मुर्तिया तराशी गयी है ईसमें राणी  उदयमति की भी मूर्ति उकेरी गए हैं। साल २०१४ में राणी की वाव को UNESCO द्वारा विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया गया। 


कैसे पहुंचे

 पाटण अहमदाबाद से ३.५ घंटे की दुरी पर है तो वही महासना से ५० किमी दूर हैं, यंहा से रेगुलर बसेस पाटण के लिए चलती  है। महासना जंक्शन से पाटण के लिए प्रतिदिन रेलवे चलती हैं। अहमदाबाद यँहा का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट हैं,जो की १३० किमी दूर हैं।





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