लताने रणदिवेंच्या घरामध्ये पार्वती बनून केला प्रवेश 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharoghari matichya chuli todays episode

 लताने  रणदिवेंच्या घरामध्ये पार्वती बनून केला प्रवेश 'घरोघरी मातीच्या चुली' Gharoghari matichya chuli today's episode घरोघरी मातीच्या चुली या मालिकेच्या पुढील भागांमध्ये आपण पाहणार आहोत लता ही ऐश्वर्या आणि सारंग ओरडून बोलते मला माहित आहे हे शूटिंग वगैरे काही नाही तुम्ही मला खऱ्या आयुष्यामध्ये करायला लावत आहात आता मला सांगा तुम्ही काय करत आहात तेव्हा ऐश्वर्याही विचारतो की ही घाबरतात इकडे आपण पाहतो जानकी ही नानाला बोलते नाना उद्या पार्वती आईचा श्राद्ध आहे आणि आज भाग आणि या जंगलामध्ये हिरव्या बांगड्या आहेत मला शिकून झाल्यासारखे वाटत आहे तेव्हा ना बोलतात ज्यांच्या काही समज करून घेऊ नको हा एक योगायोग आहे असे काहीच नसते त्यामुळे जानकी बोलते मला तर नाना पुढच्या येणाऱ्या संकटाची चाहूल दिसत आहे तेव्हा नाना सुमित्रा ऋषिकेश सर्वजण हे मंदिरामध्ये पूजा करण्यासाठी केलेले असतात आणि ऋषिकेश कोंडा मध्ये पूजा करायला जातो त्यावेळेस त्या महिला त्या कुंडामध्ये एक महिला पडते आणि ऋषिकेश आतील वाचवला जातो व तिला उचलून बाहेर घेऊन येतो तेव्हा मला विचारतात तू कोण आहेस तेव्हा ती महिला बोलते मी पार्वत...

महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर महाराष्ट्र (MAHALAXMI TEMPLE KOLHAPUR MAHARASHTRA)

 महालक्ष्मी मंदिर कोल्हापुर,महाराष्ट्र (MAHALAXMI TEMPLE KOLHAPUR MAHARASHTRA)




पुरे देश के माता के ५१ शक्तिपीठे है  जिनमे  से महाराष्ट्र में  माता के कुल साडेतीन शक्ती पीठ है जिंमे उस्मानाबाद जिले के तुळजापुर  में स्थित मा तुळजाभवानी ,नांदेड के माहूरगढ पर बसी माँ  रेणुका देवी कोल्हापूर में स्थित माता  महालक्ष्मी और नाशिक जिले के वणी मी बसी  माता  सप्तशृंगी ये साडेतीन शक्ती पीठ है।   इनामे से आज हम  इस विडिओ दर्शन करणे वाले है कोल्हापुर की  आई अंबाबाई याने माता महालक्ष्मी का मा महालक्ष्मी को करवीर निवासी भी काही जाता है।  

कोल्हापुर के महालक्मी मंदिर का इतिहास काफी लम्बा है इस मंदिर का निर्माण चालुक्या राजा के समय में ७ वि सदी में हुवा था। 

मूल मंदिर का निर्माण 7वीं सदी के चालुक्य शासक कर्णदेव ने करवाया था। 11 वीं सदी में कोल्हापुर के शिलाहार राजवंश के समय मंदिर का विस्तार हुआ। शिलाहार वंश के राजा कल्याणी  के चालुक्यों के मातहत कोल्हापुर में शासन करते थे। मंदिर के आसपास शिलाहार राजवंश के अलावा देवगिरि के प्रसिद्ध यादव राजवंश के भी शिलालेख मिले हैं। तेरहवीं सदी तक शिलाहार वंश का राज चला, लेकिन बाद में देवगिरि के यादवों ने उनका राज्य खत्म कर दिया। यादव के  विनाश के बाद ये जगह किस राजा के अधिकार में थी इसके सबुत इतिहास में नहीं मिलते बाद में  मराठा साम्राज्य में कोल्हापुर की महालक्ष्मी का और मंदिर का गौरव काफी बड़ा।

 मंदिर में महालक्ष्मी की दो फीट नौ इंच ऊंची मूर्ति हैं जो की 2000 साल से ज्यादा पुरानी बताई जाती है। मूर्ति में महालक्ष्मी की 4 भुजाएं हैं। इनमें महालक्ष्मी तलवार, गदा, ढाल आदि शस्त्र हैं। मस्तक पर शिवलिंग, नाग और पीछे शेर है। घर्षण की वजह से नुकसान न हो इसलिए कुछ साल पहले पुरातत्व विभाग ने मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया की है। इससे पहले 1955 में भी यह रासायनिक लेप लगाया गया था।


आम तौर पर भारत के ज्यादातर मंदिर का प्रवेशद्वार पूर्व दिशा की ओर या फिर उत्तर दिशा की और खुलता है। लेकिन महालक्ष्मी का मंदिर का द्वार पश्चिम दिशा में है साल में दो बार  तीन दिन डूबते हुवे  सूरज की रौशनी सीधा गर्भ गृह में माता महालक्मी के चरण को स्पर्श करते हुवे सर की तर बढ़ती  हैं ईस पांच मिनट के अद्भुत नजरो को किरणोतस्व कहा जाता हैं ये अद्भुत नजारा देखने के लिए औऱ माता का आर्शीवाद पाने के लिए लाखो की संख्या में भाविक देश विदेश से कोल्हापुर आते है। 

महालक्ष्मी की पालकी सोने की है। इसमें 26 किलो सोना लगा है। हर नवरात्रि के उत्सव काल में माता जी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर में निकाली जाती है। इसे रथोत्सव कहा जाता हैं इस उत्सव में पुरे कोल्हापुर को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और पूरा कोल्हापुर माता का दर्शन करने के लिए शोभा यात्रा के मार्ग पर माता की राह में खड़े दिखाई देते है। 

नवरात्री के समय कोल्हापुर में बड़ी मात्रा में महोत्स्व का आयोजन होता है। 

पुराणों की माने तो माता महालक्ष्मी भगवान् तिरुपती बालाजी की पत्नी है दोनों में किसी बात को लेकर झगड़ा होने के कारण माता महालक्ष्मी रूठकर तिरुपति से कोल्हापुर आकर बसी है,और आज भी हर दिवाली में तिरुपती की और से महालक्ष्मी को मानाने के लिए तोफे में दी जा साड़ी ती हैं। 

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